अंग्रेज़ी से अनुवाद : गीत चतुर्वेदी
आजकल हममें से कुछ लोग अपनी थालियों को जिस तरह देखते हैं, मुझे नहीं याद कि हम कभी उस तरह खाते थे। हम हिसाब लगाते हैं कि हम कितनी कैलरी खा रहे हैं, कितना फाइबर, कितने हेल्दी फैट्स या प्रोटीन।
प्रोटीन के प्रति जागरूकता की एक लहर सोशल मीडिया के ज़रिए कई लोगों में फैल गई है। कभी बॉडीबिल्डरों, खिलाड़ियों और न्यूट्रिशियनों का शौक़ समझी जाने वाली प्रोटीन की बातें, अब हमारे फोन पर आमफ़हम होने लगी हैं। लोग प्रोटीन की गणना कर रहे हैं, कार्बोहाइड्रेट की चिंता कर रहे हैं और पुराने सुने-सुनाए नुस्ख़ों को अपनी नई जीवनशैली में ढाल रहे हैं। लाइक और शेयर के लिए हम इन सब पर यक़ीन कर लेते हैं। इस बीच चर्बी या फैट, जोकि पुराना खलनायक हैं, निश्चित ही ख़ुद को अलग-थलग महसूस करता होगा।

प्रोटीन की चर्चा हर जगह है – ख़ुद की देखभाल, बढ़ती उम्र, सौंदर्य, प्रदर्शन और पहचान की राजनीति। भोजन को औषधि के रूप में देखने की सदियों पुरानी मान्यता को अब नए सिरे से गढ़ा जा रहा है और प्रोटीन को ऊर्जा का मुख्य स्रोत बताया जा रहा है।
यहॉं मुम्बई में, अभी भी, कार्बोहाइड्रेट सर्वोच्च स्थान पर है। अंतत: यह समुद्र के किनारे बसा बंदरगाही शहर है, जिसने दुनिया को वड़ा-पाव, पाव-भाजी और चाइनीज़ भेल दी है। लेकिन मछुआरों के गॉंवों और नमक के खेतों के बीच से एक द्वीप के रूप में विकसित हुई मुम्बई में प्रोटीन की कभी कमी नहीं रही। वह हमेशा भरपूर रहा, अपने अनेक रूपों में उपलब्ध।
इसके अलावा, मुम्बई और भारत के ज़्यादातर क्षेत्रों में प्रोटीन कभी भी ‘मात्र एक पोषक तत्व’ नहीं रहा। प्रोटीन के स्रोत के रूप में सबसे ज़्यादा प्रयोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों में से कुछ को लेकर आज भी झिझक बनी हुई है। मछली को बेहद बदबूदार माना जाता है, बीफ़ विवादास्पद है और स्कूल के मिड-डे मील में अंडे नहीं परोसे जाते। खाना या खाते हुए दिखाई पड़ना, केवल स्वाद की बात नहीं है।
हमने एक ख़ास तरह की आदत बना ली है- दूसरों की थाली और रसोई में झॉंकना, यानी एक तरह की ‘फूड-गेज़’। इसीलिए प्रोटीन से प्रेम की नई लहर में भी पुराने विचार यथावत् बने हुए हैं। तभी तो, व्हे-प्रोटीन का शेक हमारी आकांक्षाओं का प्रतीक हो सकता है, लेकिन डिब्बे में रखी तली मछली आज भी संदेह पैदा कर सकती है। इसलिए मुम्बई में विभिन्न प्रकार के प्रोटीन को समझना, सिर्फ़ पोषण की गणना करने का मामला नहीं है, बल्कि इस शहर के खानपान की विविधता की पहचान करने का भी है। और यही बात इस शहर को खानपान से जुड़ी संस्कृतियों का संगम भी बनाती है।
इस फोटो-निबंध में मैं ठीक वही कर रहा हूँ, जिसकी मैं आलोचना किया करता हूँ, यानी मैं यह देख रहा हूँ कि दूसरे क्या खा रहे हैं। शांतिपूर्ण तरीक़े से दूसरों के भोजन पर नज़र डाल रहा हूँ, जासूसी, निगरानी या हस्तक्षेप के लिए नहीं कर रहा, बस, आईना दिखाने की एक कोशिश कर रहा हूँ।
दूध :
लम्बे समय से मुम्बई में दूध का एक विशेष स्थान रहा है; पहले अनौपचारिक तौर पर अलग-अलग पंजरापोल और तबेलों में स्थापित हुआ, फिर पिछली सदी में आरे मिल्क कॉलोनी के रूप में संगठित हुआ। डेयरी ने शहर के स्वरूप को एक आकार दिया।

दूध देने वाली भैंसों के लिए आरे में एक शेड।

आरे के बाहर एक स्टॉल, जहॉं संस्था द्वारा दूध और उससे जुड़ी चीज़ें बेची जाती हैं। उसके ठीक बग़ल में एक अन्य दुकान है, जो दुनिया-भर से लाए गए व्हे जैसे न्यूट्रीशन सप्लीमेंट्स बेचती है।
देवनार डम्प यार्ड में गाऍं और भैंसें चरती हुईं। इस जगह शहर-भर का कचरा इकट्ठा होता है। हमारे द्वारा फेंके गए कचरे से हमें मिलने वाले दूध के स्रोत की निर्मिति का चक्र यहॉं पूरा होता है।

पंजाब एंड सिंध डेयरी, जोकि एक निजी डेयरी फार्म है, अपने मवेशियों को खिलाने के लिए मुलुंड बाज़ार से सब्जि़यों का कचरा एकत्र करता है।

कुछ ग्राहक पसंद करते हैं कि उनके घर के सामने ही गाय का दूध दुहा जाए।

घर-घर जाकर गधी का दूध बेचता आदमी। यह बहुत छोटे बच्चों और शिशुओं को पोषण के स्रोत के रूप में दिया जाता है।
मछली का प्रोटीन :
शहर में दूध भले एक लोकप्रिय विकल्प है, लेकिन समुद्र और खाड़ी होने के कारण मुम्बई में प्रोटीन का एक और स्रोत उपलब्ध है।

चित्र 1 : शहर के केंद्र में मछुआरा समुदाय की कई बस्तियॉं हैं।

चित्र 2 : चौपाटी पर केकड़ा।

चित्र 3 : मुम्बई के ज्वार-भाटा वाले तटीय क्षेत्रों में खुदाई करके आप प्रोटीन के अपने स्रोत की खोज कर सकते हैं।

मॉनसून हेतु प्रोटीन को संरक्षित करने के लिए मछलियों को सुखाते हुए।

मड के तट पर बॉम्बे डक और रिबन फिश को सुखाते हुए।

नवी मुम्बई में मछुआरों के एक गॉंव में एक पिता, अपने बेटे को मछली पकड़ने के लिए साथ ले जाते हुए, जिससे ज्वार-भाटा, जलप्रवाह और मछलियों के बारे में बेटे का ज्ञानवर्धन होगा।
सीपियॉं और केकड़े इकट्ठा करने के लिए एक मछुआरा स्त्री, कीचड़ में बोर्ड का प्रयोग करती हुई।
सिवड़ी रेल्वे स्टेशन के बाहर मछलियॉं उपलब्ध रहती हैं, ताकि लोग शाम को काम से लौटते समय ख़रीदारी कर सकें।
एक आम मछली-विक्रेता स्त्री, जो मज़दूरों को विविध प्रकार की मछलियॉं बेचती है।
मुम्बई में सी-फूड इंडस्ट्री में हज़ारों लोग काम करते हैं। उनकी पकड़ी अधिकतर मछलियों, ख़ासकर सूखी और संरक्षित, की खपत शहर में ही हो जाती है।

ताज़ा पानी की मछली :
मुम्बई में मछलियों से मिलने वाला सारा प्रोटीन समुद्र से ही नहीं आता, बल्कि अन्य स्रोतों और दूसरे तटों से भी आता है।

संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान में रहने वाले स्थानीय समुदाय के लोग नदियों और झरनों में मछली पकड़ने के लिए पारंपरिक औज़ारों का प्रयोग करते हैं।

दादर में ताज़ा पानी की मछली का थोक बाज़ार, जहॉं आंध्र प्रदेश की कृष्णा और गोदावरी नदी के डेल्टा और महाराष्ट्र के अंदरूनी क्षेत्रों में स्थित जलाशयों से ट्रकों में भरकर मछली आती है।

मुम्बई के शिवाजी नगर की सड़कों पर बेची जा रही मीठे पानी की मछलियॉं।
दास्तान मुर्ग़ी और अंडे की :
पहले कौन आया, मुर्ग़ी या अंडा?
इस दास्तान में हम अंडे से शुरुआत करेंगे क्योंकि यह आम है, सस्ता है और आसानी से उपलब्ध है। दोनों ही प्रोटीन के अपेक्षाकृत अधिक किफ़ायती और व्यापक रूप से उपलब्ध स्रोत हैं।



बांद्रा स्टेशन के बाहर खुले में घूमतीं मुर्ग़ियॉं।

अंधेरी के एसवी रोड पर, अपने झुंड का अगुआ, काला कड़कनाथ मुर्ग़ा।


पौधों से मिलने वाला प्रोटीन :
इन सभी स्रोतों के बावजूद, पौधों से मिलने वाला प्रोटीन संभवत: सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाता है। देश के अन्य हिस्सों की तरह यह शहर भी, अनाज और दाल के दैनिक आहार पर चलता है।

विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत बच्चों को दिए जाने वाले पोषाहार की पैकेजिंग का एक टुकड़ा। चना और गेहूँ।


पैकेजिंग और लेबल से पता चलता है कि शहर में उपयोग होने वाला खाद्य पदार्थ कहॉं से आता है। जैसे यह पैकेज गुजरात के बंदरगाह होते हुए कनाडा से आया है।


एक मेट्रो परियोजना पर कार्यरत मज़दूरों के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई चावल, दाल और सब्ज़ी। शहरी मज़दूरों के लिए महामारी के दौरान शुरू की गई भोजन-योजना हाल में बंद कर दी गई। इसमें प्रोटीन के स्रोत के रूप में दाल और अनाजों का प्रयोग किया जाता था।
रेड मीट :
शहर में सबसे महँगा प्रोटीन-खाद्य मटन है। एक शताब्दी पहले, जब पोल्ट्री का औद्योगिकीकरण नहीं हुआ था, यही मुख्य मॉंसाहार था, जोकि विभिन्न समुदायों के घरों में रविवार को विशेष रूप से पकता था। इसका स्थान आज चिकन ने ले लिया है।
देवनार में स्थित शहर के केंद्रीय बूचड़ख़ाने में बकरीद से पहले लगने वाला बकरा बाज़ार, मुम्बई के सबसे बड़े मेलों या बाज़ारों में से एक है। कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक, पूरे भारत से चरवाहे और व्यापारी इसके लिए मुम्बई आते हैं।

यहाँ दी गई संख्याऍं इस साल बकरीद से पहले बाज़ार से गुज़रने वाली भेड़ों और बकरियों की तादाद बताती हैं।



नवी मुम्बई में सड़क किनारे लगने वाली मटन की दुकानों में से एक, जो केवल रविवार सुबह ही खुलती हैं। आमतौर पर इन्हें वरिष्ठ नागरिक चलाते हैं।

भोजन हमारे सबसे साधारण सुखों में से एक है, और प्रोटीन इस धरती के लिए सबसे अनमोल लेकिन बेहद महँगी चीज़। हमारा भोजन कहॉं से आता है और उनमें कौन-सी सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है, इसे जानने के लिए गूगल करना (या अब एआई से पूछना), मज़ाक़ में ही सही, पर अपने आसपास की दुनिया पर ध्यान देने का एक तरीक़ा है। यह उस शहर और उन लोगों पर ध्यान देने का तरीक़ा है, जो हमें खिलाते हैं और उस छिपे हुए नेटवर्क पर ध्यान देने का भी, जो हमें जीवित रखे हुए है।
