CURRENT ISSUE
Essay by Srijita Biswas
Volume 4 | Issue 2 [June 2024]
The Pice Hotels of Kolkata
Volume 4 | Issue 2 | June 2024]
I discovered the term ‘pice hotel’ when I started writing my research proposal on food and public eating in Kolkata. Before that, it had only been ‘bhaat-er hotel,’ ‘rice hotel’, a place where rice is the staple on the menu. Living a hundred kilometres away from Kolkata, my first experience of eating in a pice hotel was clearly purpose-driven: a KVPY (Kishore Vaigyanik Protsahan Yojana) entrance when I was still in school, for which I had to travel to Kolkata, the examination centre closest to my hometown Krishnanagar. It was especially when time was limited and Baba and I had return train tickets; there were no plans of visiting my aunts in the city, and so we had to eat before boarding the late noon or …
कोलकाता के पाइस होटल
Volume 4 | Issue 2 | June 2024]
जब मैंने कोलकाता में भोजन और सार्वजनिक खानपान के बारे में अपने शोध-प्रस्ताव पर काम करना शुरू किया था, तब मैं पहली बार ‘पाइस होटल’ नाम से परिचित हुई थी। उससे पहले मैं सिर्फ़ ‘भातेर होटल’, ‘राइस होटल’ जैसे नामों को ही जानती थी, यानी एक ऐसी जगह जहाँ के मेन्यू में चावल एक मुख्य घटक की तरह उपलब्ध होता हो। मैं कोलकाता से लगभग सौ किलोमीटर दूर रहती थी, पाइस होटल में खाना खाने का मेरा पहला अनुभव एक विशेष प्रयोजन के तहत हुआ था : तब मैं स्कूल में पढ़ती थी, ‘किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना’ की प्रवेश परीक्षा देने के लिए मुझे कोलकाता आना पड़ा था, क्योंकि मेरे गृहनगर कृष्णानगर से सबसे नज़दीकी सेंटर वही था। हमारे पास बेहद कम समय था। बाबा और मैंने अपना रिटर्न टिकट पहले ही करा रखा था। शहर में बुआओं से मिलने की हमारी कोई योजना नहीं थी, इसलिए हमें दोपहर बाद या शाम के समय सियालदह-कृष्णानगर लोकल पकड़ने से पहले ही खाना खा लेना था। बाद में, वहाँ खाने के कुछ और मौक़े भी आए थेः मसलन जब बेहतर इलाज के लिए राजधानी के…
কলকাতার পাইস হোটেল
Volume 4 | Issue 2 | June 2024]
“পাইস হোটেল” শব্দটার সাথে আমার পরিচয় কলকাতার সাধারণ মানুষের খাদ্যাভ্যাস নিয়ে গবেষণার প্রস্তাব লিখতে গিয়ে। তার আগে “পাইস হোটেল” বলতে আমি “ভাতের হোটেল”ই বুঝতাম; ভাতের হোটেল মানে যেখানে প্রধানত ভাত পাওয়া যায়। । কলকাতা থেকে ১০০ কিলোমিটার দূরে থাকার দৌলতে প্রথমবার পাইস হোটেলে খাওয়া কাজের সূত্রে: স্কুল জীবনে কেভিপিওয়াই (কিশোর বৈজ্ঞানিক প্রতসহন যোজনা) পরীক্ষাকেন্দ্র কলকাতা হওয়ায়, যা আমার বাড়ি কৃষ্ণনগর সংলগ্ন। এছাড়াও বিশেষ করে যখন হাতে সময় কম থাকায় বাবা আর আমার ফেরার টিকিট কাটা থাকত, কলকাতার পিসির বাড়ীতে যাওয়ার পরিকল্পনা না রেখে তাই বিকেলের বা সন্ধ্যের শিয়ালদহ-কৃষ্ণনগর লোকাল ধরার আগে কিছু একটু খেতেই পাইস হোটেলে ঢুঁ মারা। তাছাড়াও, অন্যান্য কারণেও আসা হত কলকাতা: মফঃস্বলের চিকিৎসা ব্যবস্থায় না কুলালে ভালো …