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Essay by Savia Viegas
Volume 4 | Issue 10 [February 2025]

From Field, Farm, Sea to Table
Volume 4 | Issue 10 | February 2025
The Goan village of the 1960s was circumscribed by proximity to the elements, schooling its community for interdependence on nature. Houses, lifestyles, food production and consumption ingrained this wisdom. In a scenario of current living styles, it may sound tedious, but considering the extent and the damage caused by continuing climate change, this sorted lifestyle offers…

खेत, खलिहान, समुद्र से थाली तक
Volume 4 | Issue 10 | February 2025
1960 के दशक में गोवा के गाँव प्रकृति के क़रीब होते थे, जो अपने समुदायों को आपसी निर्भरता का पाठ पढ़ाते थे। घर, जीवनशैली, भोजन का उत्पादन और उपभोग- सबमें यह समझ झलकती थी। आज की तेज़ रफ़्तार जीवनशैली में यह सब कठिन लग सकता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और उसके बढ़ते दुष्प्रभावों को देखते हुए, इस संतुलित जीवन-शैली में गहरी सीख छिपी है।गाँव का रोज़मर्रा का जीवन हाशियों पर दर्ज उन नोट्स से संचालित होता था, जिनमें अकाल, सूखा, महामारी और बाढ़ की यादें सँजोई जाती थीं। मृत्यु और निर्धनता, संपन्न लोगों के लिए भी, जीवन का स्थायी हिस्सा थे। यदि धान की फसल एक-दो मौसम ख़राब हो जाती, तो पूरा संतुलन बिगड़ जाता। यदि दूध देने वाला कोई पशु मर जाता,…

भाटांतल्यान ताटांत: शेत, कुळागर, दर्या, आनी पशुधनाची अन्न उपयुक्तताय
Volume 4 | Issue 10 | February 2025
१९६०त सैमाच्या गोपांत आशिल्लें गोंय आनी गोंयकार आपल्यो मूळ गरजो भागोवपाक सैमाचेरुच अवलंबून आसताले. सैमाच्या पाठांतल्यान जोडिल्ली बुदवंतकाय घरकाम, जिणेशैली, अन्न उत्पादन आनी उपभोग हांतूत स्पश्ट दिसताली. हालींच्या जिणेशैली कडेन तुळा केल्यार पयलींची शैली कश्टी दिसत, पूण सैमीक बदलाचो आवांठ आनी ताचे पासत जाल्ली नाशाडी पळयल्यार आदींची सरळ जगपाची शैलींत एक तरेची अंतदृश्टी पळोवपाक मेळटा. चोंपडेंतल्या पानाचे देगेक दुकळ, साथ, आनी हुंवार हाचेर बरयल्ल्यो टिपण्यो दीसपट्टो वेव्हार चलोवपाक उपेगी पडटालो. मरण आनी दळडीर सारक्यो घडणुको विशेश वर्गांत लेगीत …