अनुवाद: संचित तूर
मैं शायद चौथी कक्षा में था; हम मैदान में खेल रहे थे। घंटी बज चुकी थी, पर मैं नहीं हिला था। मैंने आकाश में एक पक्षी को देखा था, न ही वह हिल रहा था; वह स्थिर था – हवा में लटका हुआ। एकाएक वह पत्थर की तरह नीचे की ओर आता हुआ क्षण भर में ही जमीन पर आ गिरा। मैं चौंक पड़ा, मुझे लगा कि वह घायल हो गया है, या शायद मर न गया हो, और मैं उसकी ओर दौड़ा। जैसे ही मैं करीब पहुँचा, वह झट्ट से उड़ गया। अचरज में डालती उसकी उड़ान ने मुझे मेरे सपने से जगा दिया, और मुझे एहसास हुआ कि उस पूरे खेल के मैदान में मैं ही अकेला था। मुझे समय की कोई सुध न थी। देर हो गई थी, सो मैं कक्षा में वापस भागा। पर वह स्मृति मेरे साथ बनी रही। कुछ साल बाद जब मैंने ‘बर्डवॉचिंग’ यानि पक्षी अवलोकन शुरू किया कि फिर से समान व्यवहार देखा और उस पक्षी की पहचान कर सका। वह काले पंखों वाली चील (ब्लैक-विंग्ड काइट) एक शानदार छोटा शिकारी; आकार में एक कौवे बराबर; लाल आँखों, श्वेत-सलेटी शरीर, व काले कन्धों वाला पक्षी है, जो प्रत्यक्ष हुआ जैसे ही वह पंख बंद कर बैठी।
Artwork – Peeyush Sekhsaria
जिस घटना ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था, उसे ‘विंड-होवरिंग’ कहा जाता है। कुछ पक्षी हवा के बराबर गति से हवा में उड़कर, जमीन की एक बिंदु के ऊपर हवा में उसी स्थान पर स्थिर रहते हैं। वे क्षण भर के लिए मँडराते हैं, और जरुरत पड़े तो तेजी से पंख फड़फड़ा कर और एक सीधी पूँछ वाली स्थिति में बन कर हवा का प्रवाह संभालते हैं ताकि स्थान में बने रह कर शिकार का पता लगा सकें। वह पक्षी अक्सर खुद को स्थानांतरित करता है, छोटी-छोटी लंबाई से, अपनी ऊँचाई कम करता हुआ, प्रत्येक चरण पर मँडराता है, और फिर एक पत्थर की तरह सीधे जमीन पर आ गिरता है, और ऐसे अंतिम क्षण में अपना गिरना रोकते हुए अपने असावधान शिकार को झपट लेता है। अक्सर इन शिकारों को बीच में ही छोड़ दिया जाता है – सफलता दर है शायद सौ में से एक।
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मेरे पास एक कुत्ता था। मिकी की छोड़ी हुई रोटियां अक्सर सख्त टुकड़ों में बदल जाती थीं। मैंने देखा कि कौवे इन टुकड़ों को उठा लेते, और उन्हें एक तरफ रख, चोंच से मिट्टी खोदते, फिर रोटी को उस छोटे गड्ढे में रखते और उन टुकड़ों को ढक देते। वे इसे थोड़ा कच्चे से लेकिन काफी कुशलता से करते। जब मैंने यह देखा तो मैं हैरान रह गया था, मैं पूरी तरह से अनभिज्ञ था। फिर एक दिन मैंने एक कौवे को जमीन खोदकर एक सूखा टुकड़ा निकालते देखा। मुझे एहसास हुआ कि उन्हें याद है कि भविष्य में उपयोग के लिए रोटियां कहाँ जमा की थीं! इतना ही नहीं, कौवे उस टुकड़े को एक छोटी सी थाली में ले गए जिसमें हमने पक्षियों के लिए पानी रखा था, फिर कड़क और मैली रोटी को सावधानी से पानी में तब तक डुबाया जब तक कि वह नरम और साफ न हो गई। वे न केवल ध्यानपूर्वक भोजन का भंडारण कर रहे थे, बल्कि इसे पुनः प्राप्त करने और खाने लायक बनाने के लिए इसे पानी में डुबाकर नरम करने में भी सक्षम थे! यह उस लोक कथा जैसा था जिसमें एक कौवा बहुत कम पानी वाले घड़े में कंकड़ डालता है, जिससे पानी का स्तर बढ़ जाता है, और अंत में वह उस घड़े से पानी पी पाता है।
Photo – Raju Kasambe CC by 4.0
उस छोटी सी उम्र में उत्साहित हो मैंने सोचा कि शायद मैंने कोई नई खोज की है। हालाँकि, जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ और ज्यादा जाना-पढ़ा, मुझे मालूम हुआ कि कौवे के अलावा कई अन्य पक्षी बाद में पुनः प्राप्त करने के लिए अपने भोजन का संग्रह करते हैं।
स्वादिष्ट निवाले की तलाश में कौवे कार्टून हो बनते हैं। एक बर्डवॉचर का लिखा एक नोट मुझे याद है – उनके छज्जे पर एक मछलियों का टैंक था जिसने एक रामचिरैया (किंगफ़िशर) का ध्यान आकर्षित किया था, जिसमें गोता लगाकर मछली पकड़ने के लिए वह पक्षी नित दिन आता। एक कौआ उसकी हरकतों को देख-परख रहा था। एक दिन उस बर्डवॉचर को पूरी तरह से हैरान करते हुए, कौवे ने रामचिरैया की नकल में मछली टैंक में ऐसा गोता लगाया कि डूबने की नौबत आ बन पड़ी! वह किसी तरह अपना भीगा, भ्रमित, और भय-स्तब्ध चेहरा ले बहार निकलने में कामयाब रहा।
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एक मधुर ची-ची-ची-ची-वी ने मेरा ध्यान खींचा। मैंने सबसे आकर्षक हॉप, स्टेप, डांस – उछल, बढ़, नाच – रूटीन वाले पक्षियों के एक जोड़े को मक्खियाँ पकड़ते देखा। उनकी तो निकल पड़ी थी, और वे हर 5 सेकंड में एक मक्खी को बड़ी आसानी से पकड़ते दिख रहे थे। वे ज्यादातर जमीन पर ही थे, और कभी-कभी चीकू के पेड़ की निचली शाखाओं के बीच जहाँ से वे अपनी जुगलबंदी चला रहे थे। कीट-पतंगे मानो उनसे सम्मोहित हो, बाहर निकल, उनके द्वारा पकड़े जाना चाह रहे थे। कुछ देर के लिए एक बुलबुल भी उनके इस प्रदर्शन का हिस्सा बन बैठी।
मैं हमारे आँगनों के काफी सामान्य, काफी दबंग, और आकर्षक डांसिंग ब्यूटी ‘द फैनटेल फ्लाईकैचर’ की बात कर रहा हूँ। लेकिन एक फैनटेल पक्षी का डांस रूटीन काम कैसे करता है?
उछलते-कूदते, एक फैनटेल फ्लाईकैचर बाएँ उछलता है, फिर दाएँ उछलता है, और फिर तेजी से पंखे की तरह अपनी पूँछ खोलते हुए आगे की ओर उछलता है। फिर उन कीड़ों को बाहर निकालता है जो छालों पर अच्छी तरह से चिपे-छिपे हुए हैं या सड़े पत्तों के बीच दबे हुए हैं। यह जल्दी से उनका पीछा करता है, और एक सुंदर कलाबाजी के पैंतरे सा, अपनी चोंच दबा आवाज करते हुए उन्हें पकड़ लेता है।
यह मनमोहक रूटीन अनदेखा नहीं रहा है – इस पक्षी को हिंदी में नाचण और मराठी में नाचरा नाम से भी जानते हैं।
Photo – Koshy Koshy CC by 2.0
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जिस जगह के आसपास हमारा परिवार आ बसा था वह कभी खेती की जमीन रही होगी। हम 1985 में वहाँ आये थे।
जहाँ हमारा प्लॉट लोहे की जाली की बाड़ के बीच धीरे-धीरे फलों के पेड़ों, सब्जियों, व गुलाब के पौधों से भरे एक बगीचे में तबदील हो रहा था, वहीँ हमारे पड़ोसियों का खाली प्लॉट एक घास का मैदान था जो सर्दियाँ आते ही अपने मूल तत्व में आ जाता। वह मैदान सुनहरे-भूरे हरे रंग में बदल जाता और मानो हवा से एक सुंदर स्वर समता में बातें करता। वह पड़ोसी प्लॉट जिसे मैं अपने कमरे की खिड़की से देख सकता था, वह मेरा एक छोटा पक्षी ब्रह्मांड था।
मैंने देखा घास को रोशनी और हवा से खेलते हुए, और एक खूबसूरत पक्षी प्रजाति को भी ऐसे खेलते देखा। सक्रिय, तेज, कलाबाज – हवा में कोई भी कीट बख्शा न गया। एक लंबी-नुकीली चोंच व लंबी हरी पूँछ के साथ जुड़ी सीधे तारें, यह था पतेना पक्षी (लिट्ल ग्रीन बी-ईटर)। इसे आसानी से ‘इन्सेक्ट डेसीमेटर’ यानि कीड़े-मकोड़ों को नष्ट करने वाला कहा जा सकता था। ‘बी-ईटर’ नाम उसकी मधुमक्खी पकड़ने वाली श्रेणी की प्रतिष्ठा से आता है, और कुछ क्षेत्रों में यह पक्षी मधुमक्खी पालकों के लिए काफी समस्या पैदा करता है। पतेना पक्षी जोड़े या समूहों में घूमते हैं, बिजली की गति से उड़ान भरते हैं, और लगभग हमेशा एक सु-प्राप्त कीट के साथ अपने पसंदीदा स्थान पर लौट आते हैं। फिर एक विचित्र प्रदर्शन में वे अपने सिर को तेजी से बायीं और दायीं तरफ बेतहाशा पीटने लगते हैं। ऐसे में वे कीट को इस कदर पीटते हैं कि वह मर जाए और निगलने से पहले वे उसके डंक के साथ अन्य बाह्य-कंकाल के कठोर अपाच्य भागों को हटा दें। महाराष्ट्र के लोगों को यह व्यवहार थोड़ा बावला-सा लगा और उन्होंने इसका नाम ‘वेड़ा रघु’ रख दिया; वेड़ा माने ‘पागल’ और रघु माने ‘तोता’, क्योंकि यह तोते की तरह दिखता है। सच पूछो तो मैं तो इसे ‘हेड-बैंगर’ यानि सिर पीटने वाला कहूँगा! अपने कीट-शिकार को लेकर उनकी इस सिर पीटने की आदत के अलावा, मुझे यह जानकर भी अचरज हुआ कि उल्लू जैसे कुछ अन्य पक्षियों की तरह, वे भी अपने मुँह से अपने शिकार के कठोर अपचनीय भागों से बने छर्रे उगल फेंकते हैं।
Artwork – Peeyush Sekhsaria
श्राइक, खासकर लंबी पूँछ वाले श्राइक, हमारे देश के सूखे भागों में काफी आम हैं। मध्यम आकार के, छोटे शिकारी पक्षियों से दिखने वाले, और अपने-को-क्या का स्र्ख़ रखने वाले पक्षी, वे एक खंभे या शाखा पर बैठते हैं जहाँ से वे अपने हमले करते हैं। पक्षियों के नाम अक्सर उन्हें विचित्र तरीके से चित्रित करते हैं। इस पक्षी का वैज्ञानिक नाम ‘लानियस’ और मराठी नाम ‘खाटीक’ इसके एक विशेष व्यवहार को वर्णित करते हैं, जो एक कसाई के काम से मेल खाता है।
हमारे बगीचे में एक नींबू का पेड़ था जो मेरी लंबाई से काफी ऊँचा हो गया था। इस पेड़ के पास कंटीले तारों की बाड़ पर अक्सर एक श्राइक बैठा रहता था। एक दिन मैंने देखा कि एक छिपकली काँटे पर लटकी हुई है। मैंने उस पर नजर रखने का सोचा। पर जब मैं वापस पहुँचा तो शिकार कहीं नजर न आया। यह अविश्वसनीय था, मैं वास्तव में वह देख रहा था जो किताबों में पढ़ा था। एक कसाई अपने काम को अंजाम दे चुका था। लेकिन श्राइक अपने शिकार को बेध क्यों देते हैं? जबकि श्राइक के पास एक बहुत तगड़ी व घुमावदार पंजे जैसी चोंच और शक्तिपूर्ण सिर व गर्दन होते हैं, और इस प्रकार, वे छोटे शिकारी पक्षियों के समान होते हैं, पर उनके पास शिकारी पक्षियों वाले मजबूत पैर व पंजे नहीं होते। श्राइक छोटे शिकार, जैसे छिपकली, मेंढक, छोटे सांप और पक्षियों का शिकार कर सकते हैं, मगर उनके पास इसे खाते समय पकड़ने के लिए आवश्यक बलशाली चंगुल नहीं हैं। और यहीं अपने शिकार को बेधना काम आता है। वे बाद में खपत के लिए भोजन का संग्रह करने के लिए भी इसका उपयोग करते हैं। श्राइक पक्षियों का बेधने का यह तरीका एकदम अनूठा है। इस प्रजाति के कुछ पक्षिओं को जहरीले टिड्डों को पकड़ और बेधने के लिए भी जाना जाता है। खाने से पहले वे कुछ दिनों तक इस कीट के जहर के नष्ट होने का इंतजार करते हैं। और यह बताऊँ कि यह कसाई व्यवहार श्राइक के लिए कितना महत्वपूर्ण है: कुछ प्रजातियों में नर अपने द्वारा बेधा गया विभिन्न प्रकार का भोजन प्रदर्शित करके मादा को आकर्षित करने की कोशिश करता है। इसमें रंग-बिरंगे गैर-खाद्य पदार्थ भी शामिल हो सकते हैं। जब एक श्राइक दंपत्ति के बच्चे होते हैं, तो नर का काम अपने शिकार को बेधना होता है, अक्सर उसका सिर खा, और मादा चुन-चुन कर खुद को और अपने बच्चों को यह बेधित भोजन खिलाती है।
कुछ साल पहले, जब मैं पुणे के सिंहगढ़ किले की तलहटी में पक्षी विहार कर रहा था, मैंने बहती धारा के किनारे एक चट्टान पर खून के छोटे धब्बे देखे। वे धब्बे ताजा लग रहे थे। यह जान उत्साहित हो कि मैं एक शिकार के करीब था, मैंने ध्यान से आसपास देखना शुरू किया। आश्चर्यचकित, मैंने देखा कि करोंदा झाड़ी के एक कांटे में एक छोटा सा पक्षी सूली पर लटका हुआ था; उसका सिर गायब था। मैं चुपचाप वहाँ से पीछे हट गया, क्योंकि कसाई की वापसी हो चुकी थी।
Artwork – Peeyush Sekhsaria
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बुलबुल एक सामान्य उद्यान पक्षी है जो पूरे देश में पाया जाता है। खूब निडर और इंसानों से परिचित, यह अक्सर छोटी गमलानुमि झाड़ियों में घोंसला बनाता है, और इसका घोंसला कसकर बुने हुए अर्ध-गोलाकार कप जैसा होता है। हाल में मैंने इसे घरों के भीतर पर्दे की छड़ों पर घोंसला बनाते हुए भी देखा है, जो या तो यह संकेत करता है कि घोंसलों के लिए पर्याप्त उपयुक्त झाड़ियाँ नहीं हैं, या यह कि बुलबुल कुछ घरों के आतिथ्य को टाल नहीं सकता। अभी हाल तक, मुझे बुलबुल एक फलभक्षी पक्षी जान पड़ता था, जामुन और फलों पर निर्भर रहने वाला। यह गलतफहमी कुछ समय पहले दूर हुई जब मैंने उन्हें बद्धहस्त मैंटिस (प्रेइंग मेंटिस) और इल्ली (कैटरपिलर) को अपने घोंसलों में ले जाते देखा। स्पष्टतः बच्चे लोगों को कुछ कीट प्रोटीन की आवश्यकता आन पड़ी! मैंने यह चिड़िया जैसे अन्य पक्षियों में भी देखा था, जो हालांकि बड़े पैमाने पर अनाज और बीज पर निर्भर हैं, लेकिन अपने बच्चों को खिलाने के लिए कीट प्रोटीन लाते हैं।
मेरे बेडरूम में रखी वर्क टेबल से पड़ोसी के बंगले की छत दिखाई देती है। पक्षी इस छत पर आते-जाते हैं – उनके पसंदीदा स्पॉट भी हैं। उनमें से एक है मुंडेर का कोना, जहाँ अक्सर एक बुलबुल अपना शिकार ले आती थी। तब घोंसले बनाने का मौसम था, और इसलिए वह अक्सर ताजे पकड़े हुए, कुड़कुड़ाते कैटरपिलर लाती, फिर उन्हें बुरी तरह से पीटती, और मृत कीट को अपने घोंसले में ले जाती थी। फिर एक दोपहर, जब मैं काम में पसीना बहा रहा था, एक अप्रत्याशित घटना होने को थी। वह बुलबुल एक असामान्य से शिकार के साथ आई। मुझे शुरू-शुरू में लगा कि एक मेंढक है। जो कर रहा था उसे तुरंत छोड़, मैंने अपना कैमरा उठा लिया। जैसे ही मैंने कैमरे को उस पक्षी पर केंद्रित किया, मैंने जाना कि वह तो एक घरेलू छिपकली थी। उसकी पूँछ गायब थी – अवश्य ही छिपकली ने हथियार-रुपी अपनी सभी चालें आजमाई थीं, पूँछ को हटाने सहित। वह पक्कम-पक्का मृत लग रही थी, लेकिन बुलबुल अभी भी उसे मारने या उसके छोटे-छोटे टुकड़े करने की कोशिश में लगी थी। उचित समय बिताने के बाद भी इसमें सफल नहीं होने पर, बुलबुल वह नमूना लेकर उड़ गई।
मैं यह देख चकित था, मैं यह भी सोचता रहा कि क्या बुलबुल अपने बच्चों को खिलाने के लिए छिपकली को छोटे टुकड़ों में तोड़ने में सफल होगी, क्योंकि वह छिपकली उसके सभी कीट शिकार से बड़ी और तगड़ी थी। शिकार को पकड़ कर फाड़ने में सक्षम होने के लिए बुलबुल के पास उपयुक्त चोंच या तेज पंजे नहीं होते। इंटरनेट पर थोड़ी खोजबीन कर मैंने बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी की पत्रिका (जर्नल ऑफ़ द बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी) में कम से कम दो दिलचस्प नोट खोज निकाले। भारत में पक्षी अवलोकन के अगुआ सालिम अली और डिल्लों रिप्ले ने एक ऐसे मामले का उल्लेख किया है जिसमें बुलबुल ने अपने चूजे को एक छोटी छिपकली खिलायी, जो उसे निगलने की कोशिश में मर गया। 1999 की तारीख के एक दूसरे नोट में, जो हास्यजनक है, बात है एक बुलबुल के छिपकली पर हमला करने की। अपने स्टाइल में छिपकली ने अपनी पूँछ को काट फेंका, जो बिन रुके कांपने लगी। चाल काम कर गई, बुलबुल लगी पूँछ के पीछे, और छिपकली भाग निकली।
मुझे एक वीडियो भी मिला। वीडियो के लगभग एक मिनट चलने पर, एक बुलबुल अपने घोंसले पर एक पूँछ-कटी छिपकली ले आ बैठती है। उसके बच्चे मुँह खोल और सिर कंपाते भोजन की मांग कर रहे हैं, यह दिखलाते हुए कि यदि उन्हें तुरंत नहीं खिलाया गया, तो वे मर जाएंगे। पर, लगभग 30 सेकंड जूझने के बाद ही बुलबुल अपने एक बच्चे के खुले मुँह में छिपकली डालने में सफल रही। इस बड़े शिकार से निपटने में बुलबुल जनक ने एक शिकारी पक्षी जैसी कोई क्षमता नहीं दिखाई, जहाँ बच्चों को खिलाने के लिए छिपकली छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़ दी जाती। यह असामान्य व्यवहार एक सवाल पैदा करता है: स्पष्ट रूप से बुलबुल अपने बच्चों के लिए छिपकली रुपी प्रोटीन लाने में खूब मेहनत करती है, लेकिन साथ ही, उसके पास शिकार को संभालने के लिए उपयुक्त चोंच और पंजे नहीं होते, और शायद अपने चूजों का जीवन खतरे में भी डाल बैठती है। फिर वह ऐसा क्यों करती है?
Photo – Peeyush Sekhsaria
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अपने पुणे वाले घर की पहली मंजिल की खिड़की से बाहर एक खूबसूरत अमलतास के पेड़ को देखता, मैं फोन पर था।
ऐसा लगा कि कोई छोटी सी चीज तेजी से हिली, ध्यान से मैंने एक मादा पंचरंगी सूर्यपक्षी (पर्पल-रम्प्ड सनबर्ड) को देखा। अधिक परिमाण में वह फूलों के मधुरस पर पलते हैं, लेकिन कभी कीड़ों पर भी, और बिना फूलों वाले पेड़ को देखती-परखती वह यही करती दिख रही थी। तभी एक दुसरे पक्षी की तेज उड़ान पर मेरा ध्यान गया – वह आया और उसी क्षण वापस चला गया। और मैंने उसे फिर से उड़ते हुए देखा – वह था एक नाचण (द फैनटेल फ्लाईकैचर)। जैसे ही मैं उसके उछल-मुड़-पंखा-नाच-उड़-पकड़ रूटीन की सराहना कर रहा था, मैंने पेड़ की घनता में एक अन्य पक्षी, एक चिड़िया, को देखा। करीब से देखने पर, मैंने पाया कि वह थोड़ी छोटी, पतली, स्पष्ट और ठीक साफ काले-व-सफेद स्वरुप की थी – एक रामगंगरा (द सिनेरेयस टिट)! अपना सिर झुकाना, छाल को गौर से देखना, और कीड़े खोजना उसकी खूबी जान पड़ती थी। जैसे ही मैं यह देखने की कोशिश कर रहा था कि मादा सूर्यपक्षी कहाँ गायब हो गई थी, एक शानदार नारंगी रंग के पक्षी पर मेरी नजर पड़ी: एक छोटा ‘मिनिवेट’ यानि सहेली! अगर नर पास है तो मादा भी दूर नहीं हो सकती है, और वह थी वहाँ दाहिनी ओर, थोड़ी पीली, यद्यपि उतनी आकर्षक नहीं, लेकिन फिर भी खूब मनोहर। आँख के कोने से मैंने पास के कचनार के पेड़ में एक पूर्वी दर्जिन चिड़िया (ओरिएंटल टेलर बर्ड) को इधर-उधर फुदकते हुए देखा। वह हर पत्ते की नीचे और फिर ऊपर की तरफ से जाँच-परख करते हुए, दोहराती जा रही थी। कैसे पक्षियों की पाँच प्रजातियाँ और कुल मिलाकर छह पक्षी, सभी लगभग समान आकार के, एक अमलतास की समान ऊँचाई पर एक दूसरे से 6 फीट की दूरी के भीतर, एक ही भोजन की तलाश में थे, लेकिन एक दूसरे से लड़ नहीं रहे थे? खैर, यह थी निश्चित रूप से प्रसिद्ध पार्टी, मिक्स्ड हंटिंग पार्टी, जिसे मिश्रित शिकार झुंड भी कहते है, जहाँ पक्षी शिकार करने के लिए जुटते हैं और होड़ किए बिना एक दूसरे की मदद करते हैं।
नाचण पक्षी अपने नृत्य के माध्यम से कीड़ों का पता लगाता, फिर अपने शिकार को पकड़ने के लिए जल्दी से उड़ता। वहीँ सहेली पक्षी का जोड़ा पत्तियों की बारीकी से जाँच करके अपने लिए कीड़े ढूंढता और दुबकता व छोटी-छोटी उड़ान भरता। जबकि सूर्यपक्षी और दर्जिन पक्षी पत्ती दर पत्ती और छोटी शाखाओं को नीचे और ऊपर से ध्यान से देखते-परखते, रामगंगरा अपने शिकार के लिए पेड़ की छाल की सावधानीपूर्वक जाँच पर अधिक इच्छुक रहता। मैं यह सब देर तक नहीं देख सका क्योंकि झुंड आगे बढ़ गया। मैंने यह सब जंगलों में देखा था और उसके दिलचस्प किस्से पढ़े थे, लेकिन मैं यह घटनाऐं स्वयं देखने की उम्मीद नहीं कर रहा था। हरि श्रीधर, जिन्होंने अंशी टाइगर रिजर्व के जंगलों में मिश्रित शिकार झुंडों पर शोध और ऐसे 250 से अधिक झुंडों का अध्ययन किया है, उन्होंने पुष्टि की कि यह एक मिश्रित शिकार दल ही था। उनके शोध में 23 प्रजातियों के 55 अलग-अलग पक्षियों तक के झुंडों की सूचना है – जबकि कुछ पक्षियों को अधिक संख्या और कुछ सतर्क प्रजातियों के होने से लाभ होता, दूसरों को बेहतर व कुशल शिकार से लाभ होता, और कुछ अन्य को चोरी की आसानी से; झुंड ज्यादातर एक साथ ही रहता। जैसे हरि श्रीधर कहते हैं, एक मिश्रित-प्रजाति का झुण्ड दो तरह से असाधारण होता है: पहला सुरुचिपूर्ण और दूसरा पारिस्थितिक। यूँ तो उन पाँच प्रजातियों में से प्रत्येक को उनकी सुंदरता के लिए देखने में आनंद आता है, पर उन सभी को एक बार में देखना, और वह भी अपने कमरे की खिड़की से, अपने बगीचे में, वास्तव में कुछ अलग ही अनुभव था।
मिक्स्ड हंटिंग पार्टी शुरू हो!
Artwork – Bhargav Kumar Kulkarni